किसी की आवाज से वो नही कांपेगी
किसने सोचा था की
नारी बर्दाश्त करती रहेगी
जब जब नारी का हुआ है अपमान
तब तब कांप गया है आसमान
और इस धरती पर आती है तबाही
क्योंकि कुदरत भी डरती है उसके श्राप से।
नारी सदियों से अपने लिए संघर्ष करती रही
उसने कभी दिल से हार नही मानी
हर मुश्किल का करके सामना नारी के विश्वास की सदैव हुई जीत
वो नारी ही है
जो हर किसी के दिल की बनती है उम्मीद
बांटती है हर किसी का दर्द
ऐसी है आज की नारी।


लेखिका आयशा अल ग़जल
सुल्तानपुर,उत्तर प्रदेश