समय

समय सदैव एक सा नहीं रहता
यह परस्पर है बदलता
कहीं जहां थीं नदियां
वहां आज वीराना होता है

कहीं जहां थी कल बंजर ज़मीन
वहां आज गुलजार है
पर्वत के समान बनूं या बनूं नदियों सा
यह मुझपर निर्भर है करता
पर्वत हमेशा हर मुश्किल का करके सामना रहते हैं
हमेशा मौजूद
समय बदलता
बदलती सदियां परंतु
पर्वत सदा शिखर पर रहते।
पर्वत हर मुश्किल के सामने हैं चट्टान
बनना है तो बनो

पर्वतों के समान
जीवन है तो मुश्किलें भी आयेंगी
परंतु बिना लड़े
हार जाने वाला
मनुष्य ही नही ।

आयशा अल ‘ग़जल’
सुल्तानपुर , उत्तर प्रदेश

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