बच्चे हो रहे अवसाद के शिकार, कोचिंग सेंटरों का हब बन रहा आगरा |
सूर्योदय भास्कर ब्यूरो/आगरा। कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्रों द्वारा की जा रही सुसाइड ने हर किसी को हैरत में डाल दिया है। वर्तमान में कोटा एक डेथ फैक्ट्री के रूप में सामने आ रहा है। अभिभावक बच्चों को इंजीनियर और डॉक्टर बनने के लिए भेजते हैं लेकिन वहां बच्चा पढ़ाई के बोझ तले दब जाता है और अवसाद का शिकार हो जाता है। जहां उसे आत्मघाती कदम उठाने पर रहे हैं। रविवार को कोटा में दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद जारी आंकड़ों ने और डरा दिया है। कहीं आगरा में भी तो कोटा की तर्ज पर बच्चे अवसाद का शिकार नहीं हो रहे हैं। यह सवाल हर उस अभिभावक के ज़ेहन में गूंज रहा है जो अपने बच्चों को इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने के लिए कोचिंग संस्थानों में भेज रहे हैं। आगरा में भी तमाम कोचिंग संस्थान खुल गए हैं। जहां बच्चों को इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी कराई जा रही है।
कोचिंग सेंटरों की बाढ़ सी आ गई है। कोई भी मानकों का पालन नहीं कर रहा है। ऐसे में आए भाववकों के सामने बड़ा सवाल है कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं अथवा नहीं। बैच में ना रखे जाएं अधिक बच्चे, बच्चों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस कहते हैं कि अभिभावकों ने अपने बच्चों को अपेक्षाओं के बोझ तले दबा दिया है। अब हर मां-बाप यही चाहता है कि उसका बेटा डॉक्टर और इंजीनियर बने। बच्चा अपनी मेहनत से 90 प्रतिशत भी अंक ले आता है तो उसे पर भी अभिभावक संतुष्ट नहीं होते हैं। बच्चा एक मशीन बनकर रह गया है। कोचिंग संस्थानों का निरीक्षण कराया जाए। एक बैच में 60 से अधिक बच्चों को ना रखा जाए। साथ ही साथ कोचिंग संस्थानों में काउंसलर रखे जाएं जो बच्चों की समय-समय पर काउंसलिंग करते रहें। इनकी नियमित निगरानी होती रहे।