सूर्योदय भास्कर संवाददाता/आगरा। अक्सर आपने देखा होगा, कई बार ठेके के आसपास खुले में नमकीन की स्टाँल के पास शराबियों की महफिल जमी होती है। जिसमें प्लास्टिक के गिलास का उपयोग भी होता है। सबसे बड़ी बात तो यह है की न जाने कितनी बार प्लास्टिक के गिलासों की बंदी को लेकर अभियान चलाया गया। लेकिन फिर भी कोई किसी प्रकार की प्लास्टिक के गिलासों को मार्केट में आने से ना रोक सके व शराबियों के लिए यह प्लास्टिक के गिलास बड़े ही काम की चीज साबित हो रही है।जबकि सभी लोग जानते हैं। इस बात को राजनीतिक लोगों से लेकर उच्च अधिकारियों तक सब कुछ सब लोग जानते हैं। लेकिन मेहरबानी भी पुलिस की ही रहती है शराबियों पर। ऐसा नहीं है कि हर रोज ठेके के सामने से किसी अधिकारी या राजनीतिक एवं समाजसेवी की गाड़ी ना निकले। लेकिन किसी की नजर इन लोगों पर नहीं पड़ती न समय से पहले भी शराब के ठेके खुले मिल जाते हैं। यह तो शराबियों के लिए सोने में सुहागा हो जाता है। लेकिन इससे कई घरों में झगड़ा भी होता है।

शराब परिवार में झगड़े का कारण बन जाती है और शराबियों को तो एक बहाना चाहिए। अगर कोई गलती हो जाए या घटना हो जाए या कहीं कोई टिप्पणी कर दें तो सभी लोग यही कहते हैं कि नशे में हो गया, गलती हो गई। लेकिन बात यह है अगर इसी नशे को कम किया जाए तो कैसा है। हम यह नहीं कहते कि शराब के ठेके बंद कर दें। लेकिन इतना तो हो सकता है। कि शराब के ठेके सही समय पर ही खोलें 10.00 बजे ही खोलें और रात को 10.00 बजे के बाद बंद हो यह अधिकारी अगर खास ध्यान रखें।तो ना तो किसी परिवार में झगड़ा होगा ना कोई बात विवाद होगा और ना ही कोई यह कहने का मौका मिल पाएगा। किसी को की गलती हो गई। ऐसे कई चीजों में कमियां आएंगी और अगर प्लास्टिक के गिलास की फैक्ट्री पर पाबंदी लग जाए तो दोनों ही काम कारगर है। नशे बाजो में कमी आएगी घरेलू परिवार जनों के बीच झगड़े में कमी आएगी। काफी ऐसी वजह है जिनमें कमी ही कमी आएगी, अगर उच्चअधिकारी सही और ठीक समय पर निर्णय ले तो क्या नहीं हो सकता सब कुछ हो सकता है। तो अब देखना होगा कि उच्च अधिकारी एवं राजनीतिक लोगों से लेकर प्रशासन के सभी अधिकारी जो की आबकारी अधिकारी भी इन सभी ये सभी मिलकर काम करें और कानूनी कार्रवाई करें। तो सब कुछ सफल ही सफल हो जाएगा और कई बच्चे बुजुर्ग लोगों की दुआ भी मिलेगी। जरा उनसे जाकर पूछे जिनके घरों में शराब के नशे के कारण चूल्हा भी एक टाइम बड़ी मुश्किल से जलता है। ऐसे लोगों का दर्द अगर उच्च अधिकारी समझे तो शायद कुछ सुधार हो सके।

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