हाजी विलायत अली ने फर्रुखाबाद तबला घराने को तो ठुमरी सम्राट ललन पिया ने बोल बांट शैली को दी ख्याति

सूर्योदय भास्कर,फर्रुखाबाद। कहते है कि संगीत जीवन में एक रवानगी है। संगीत में वह ताकत है जो गिरता हुआ इंसान खड़ा हो जाता है। संगीत में वह ऊर्जा है जिसकी तान पर दीपक जल उठते हैं। लेकिन वर्तमान की पीढ़ी ने संगीत के मायने ही बदल दिए। शोर शराबा और उस पर अनगढ़ तरीके से गले से निकलने वाली आवाजों को संगीत मान लिया गया।
लेकिन फर्रुखाबाद की धरती पर संगीत के घरानों के जन्मदाता ठुमरी सम्राट ललन पिया और तबला घराने के उस्ताद हाजी विलायत अली को यहाँ के संगीतकारों की नई पीढ़ी भूल ही गई जो कि काफी चिंता का विषय है। भले ही फर्रुखाबाद की नयी पीढ़ी न जानती हो लेकिन जिनसे नगर को संगीत जगत में तीर्थ संज्ञा प्राप्त हुई। वे फर्रुखाबाद के दो संगीत रत्न मोहल्ला मित्तू कूंचा में जन्मे पण्डित नंद लाल सारस्वत ललन पिया और मोहल्ला चीनी गरान में जन्मे उस्ताद हाजी विलायत अली खां हैं।

स्व. आचार्य कंचन जी व डॉ. विद्या प्रकाश दीक्षित

ललन पिया ने बंदिश की ठुमरी में नई शैली को जन्म दिया तो उस्ताद विलायत अली खां ने तबले के छठे घराने के रूप में फर्रुखाबाद को ख्याति दिलाई। प्रशासन, प्रतिनिधियों और जन सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं की उपेक्षा से इन दोनों विभूतियों के नाम से कोई गली, सड़क, भवन कुछ नहीं हैं। स्व. आचार्य ओम प्रकाश मिश्र कंचन जी अपने जीवन में इनकी मूर्तियों की स्थापना के लिए प्रयासरत रहे किन्तु सफलता नहीं मिली। उनके द्वारा स्थापित और उनके शिष्य डॉ. विद्या प्रकाश दीक्षित द्वारा संचालित ललन पिया हाजी विलायत अली संगीत अकादमी के अतिरिक्त इन महापुरुषों के नाम से कुछ नहीं है। आखिर नई पीढ़ी जाने भी तो कैसे?

फर्रुखाबाद के चीनीग्राम मोहल्ले में 1779 में जन्मे हाजी विलायत अली ने अल्लाह से दुआ की थी कि वह कुछ ऐसा कर सकें जो जन्मभूमि का नाम रोशन हो। शुरू से ही भारतीय संगीत में रमे उनके मन में उभरीं गतें व बोल जब तबले के नाद में झंकृत हुई तो वहीं से शुरू हो गया तबले का फर्रुखाबाद बाज घराना। तबला वादन के छह घरानों दिल्ली, पंजाब, अजराड़ा, बनारस, लखनऊ व फर्रुखाबाद में फर्रुखाबादी बाज की खास शैली रही है। उस्ताद हाजी विलायत अली ने संगीत की दुनियां में नई प्रकार की कई गतों का अविष्कार किया। एक गत में ही कई बार चाल बदलती है। ‘तुम किन किन धन दिन्ता, धन नन नन कत तुम किन कत’, दिन गिनत गिनत नन तकत तकत तन कत कत’ जैसे अर्थपूर्ण शब्दों से वादन भावपूर्ण बन गया। कोलकाता में उस्ताद करामत उल्ला व पंडित ज्ञानघोष आदि ने भी इस घराने के नामचीन तबला वादक के रूप में प्रसिद्धि पाई।
ललन पिया उप नाम से मशहूर पंडित नंदलाल सारस्वत शहर के मित्तू कूंचा मोहल्ले के थे। उनका जन्म 1856 में हुआ था। उनकी अधरबंद ठुमरी में ‘सखि सैया की सुरतिया जियरा हरे, ऐसे नैना अनियारे कजरारे खंजन सो खरे व काहे बनाओ झूठी बतियां हमसे, बतियां न बनाओ मोसे फेर-फेर’ जैसी रचनाएं संगीत के क्षेत्र में मानों सर्वकालिक बन गई हैं। ललन पिया ने करीब एक हजार ठुमरियों की रचना की। उन्होंने बंदिश की ठुमरी में बोल बांट शैली को जन्म दिया।

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