सवाल: कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने कहा पाक्सो का मामला नहीं

(शरद कटियार/पंकज सचान),लखनऊ। पाक्सो का आरोप नहीं बनता। जांच में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं। इसलिए केस को क्लोज किया जाए। ये बात दिल्ली पुलिस न्यायालय में कह रही है। भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगाये गए यौन आरोपों की गहन जांच करने के बाद दिल्ली पुलिस की यह उपलब्धि सामने आयी है।
भाजपा सांसद के खिलाफ सात पहलवानों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। याद रखिये कि इनमें एक नाबालिग पहलवान भी शामिल थी। बुधवार को दिल्ली पुलिस ने अलग अलग न्यायालयों में दो चार्जशीट दाखिल की हैं। एक एमपी-एमएलए कोर्ट में और एक पटियाला हाउस कोर्ट में, दिल्ली पुलिस ने इतनी मेहनत की है कि चार्जशीट 1500 पेज की हो गई। दूसरी चार्जशीट में सांसद को पांच धाराओं में आरोपी बनाया गया है। कमाल देखिये कि इनमें से सिर्फ एक धारा गैर जमानतीय है। इसके खिलाफ सांसद देश के किसी भी न्यायालय से अग्रिम जमानत ले सकते हैं।

चार्जशीट जब अब न्यायालय में दाखिल हो चुकी है तो जब तक न्यायालय का पूरे मामले में निर्णय नहीं आ जाता तब तक सांसद की गिरफ्तारी हो नहीं सकती। इस देश में किसी भी केस का फैसला आने में बहुत लम्बा समय लगता है फिर जहां सत्ताधारी सांसद का मामला हो तो निर्णय आने में लंबा समय नहीं अनंत समय भी लग जाए तो कौन सी बड़ी बात होगी। देश ही नहीं विदेश में भी चर्चा का विषय बने इस मामले का इसी तरह पटाक्षेप होगा, इसका अंदाजा तो पहले से हो ही रहा था। सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह की बाहुबली छवि का असर वाकईं न्याय प्रणाली पर भारी पड़ गया। आस-पास की कम से कम पांच लोकसभा सीटों पर उनका दमदार प्रभाव है। दबंग हैं, टाडा में जेल की भी शोभा बढ़ा चुके हैं। राजनीतिक रसूख यह कि अभी हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव में अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा को हरवा कर यह बता चुके हैं कि ये हूं मैं।
कुल मिलाकर एक बात तय हो चुकी है कि भाजपा के बाहुबली सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह की अब गिरफ्तारी नहीं होगी। इसी साल 18 जनवरी को संवाददाता सम्मेलन में देश के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार नहीं अनेक बार पदक जीत चुकी महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के मुखिया भाजपा सांसद पर यौन उत्पीड़न करने का सनसनीखेज आरोप लगाया था। अब, चूंकि आरोप भाजपा सांसद पर हो तो दिल्ली पुलिस रिपोर्ट लिखे तो कैसे। हार-थक कर ये पहलवान पहुंचते हैं देश के सबसे बड़े न्यायालय सुप्रीम कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश देता है। सांसद के खिलाफ पाक्सो के तहत ही अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है।
पाक्सो एक्ट को निर्भया काण्ड के बाद कानून में शामिल किया गया था। इस एक्ट के तहत मामला दर्ज होते ही आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है। सांसद का मामला होने के चलते यहां पाक्सो की ही धार कुंद हो जाती है और सांसद का बाल भी बांका नहीं होता है। इस मामले में पाक्सो एक्ट का हश्र देखने के बाद आम आदमी को यह लगने लगा है कि देश में दो पाक्सो एक्ट हैं। एक आम लोगों के लिए। दूसरा खास लोगों के लिए।

दिल्ली पुलिस ने ऐसा पहली बार नहीं किया है। इससे पहले भी अगर आप याद करें तो आरुषी मर्डर केस में भी दिल्ली पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की थी। न्यायालय ने कहा कि नहीं हम इसको नहीं मानते। न्यायालय ने क्लोसर रिपोर्ट को चार्जशीट में तब्दील कर दिया। इसी के चलते आरुषी के माता और पिता को गिरफ्तार किया गया। यह बात अलग है कि उच्च न्यायलय से उनको जमानत मिल गई और आज वो आजाद हैं। इस प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के ही वर्ष 2018 में रिटायर हुए जज जस्टिस मदन बी लोको की टिप्पणी गौर करने वाली है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को शुरू में ही दिल्ली पुलिस से नाराजगी जतानी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट जब दिल्ली पुलिस को एफआईआर के लिए कह रहा था तो इसकी जांच भी अपनी निगरानी में करवानी चाहिए थी ।
दिल्ली पुलिस का पहलवानों से ही यह कहना की आप साबित करो कि आपका यौन उत्पीड़न हुआ है। इस बात का सबूत दो आदि-आदि। दूसरे, जिस नाबालिग महिला पहलवान की शिकायत पर पाक्सो की धारा लगी थी। उसके बयान जब 164 के तहत दर्ज हो चुके तो बार-बार उससे इस मामले में सवाल करना तो उसके उत्पीड़न की श्रेणी में ही गिना जाएगा।
किसी मामले की जब जांच चल रही हो तो उस मामले में देश की कोई संस्था दखल नहीं दे सकती। सिवाय जांच अधिकारी के। जांच अधिकारी मामले की प्रगति की जानकारी अपने महकमे के वरिष्ठ अधिकारियों को ही देता है। ऐसे में देश के खेल मंत्री को यह ज्ञान कहां से मिल गया कि 15 जून को चार्जशीट दाखिल होगी। 15 जून को ही चार्जशीट दाखिल होती है। अब एक तारीख बची है वो है 22 जून। 22 जून को न्यायालय यह तय करेगा कि चार्जशीट को स्वीकार किया जाए या नहीं। न्यायालय अगर चार्जशीट को इसी प्रारूप में स्वीकार करता है तो इसके बाद इस मामले का ट्रायल शुरू होगा और फिर उसका न्यायिक फैसला आयेगा। फैसला कब तक आयेगा। इसका इन्तजार करना होगा।

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