लोकसभा चुनाव का सेमिफाइन स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी चारों खाने चित, योगी मोदी के सहारे जीत की तैयारी

यूथ इण्डिया संवाददाता,फर्रुखाबाद। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर पीएम मोदी और सीएम योगी के चेहरों पर लोकसभा चुनाव जीतने की कवायद में जुट गई है। लोकसभा चुनाव का सेमिफाइनल समझे जाने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में जिले में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बावजूद नेता पार्टी की नहीं बल्कि योगी व मोदी की उपलब्धियां गिनाकर लोकसभा चुनाव जीतने का सपना सँजोने लगे हैं। स्थानीय निकाय की हार पर आत्मचिंतन की जगह सरकार की उपलब्धियां गिनाने में जुटे हुए हैं।
भले ही प्रदेश स्तर पर मेयर के चुनावों में भाजपा ने सभी सीटे अपने नाम कर लीं। लेकिन जिले को देखा जाए तो नवगठित नगर पंचायतों समेत कुल नौ नगर पंचायतों व नगर पालिकाओं में केवल दो स्थानों पर भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब हो पाई। बाकी सात स्थानों पर बुरी तरह पराजित हुई। लेकिन नेतृत्व ने स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी की हार पर चिंतन भी नहीं किया, क्योंकि शायद प्रांतीय नेतृत्व को यह मालूम होगा कि जिले में पार्टी की हार कुछ अपनों की ही देन है। आस्तीन के साँप और कुल्हाड़ी में पड़े बेट की कहावतें चरितार्थ हुईं हैं। तभी न तो प्रांतीय नेतृत्व ने हार की समीक्षा करना उचित समझा न ही जिला स्तर पर कोई आत्मचिंतन किए जाने की खबर है।

केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाने हेतु आयोजित बैठक

नगर पालिका सदर सीट पर तो भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रूपेश गुप्ता की माँ सुषमा गुप्ता के रूप में पूरी पार्टी की इमेज दांव पर लगी थी। बावजूद इसके भाजपा तीसरे नंबर पर खिसक गयी। समझा जाता था कि संगठन इस हार पर आत्ममंथन करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। एक समीक्षा बैठक तक नहीं बुलाई गई। न ही नगर निकाय चुनावों में हार पर कोई नेता ने अफसोस जताया। जबकि आम कार्यकर्ताओं ने नगर निकाय चुनाव में हार की निराशा अब तक व्याप्त देखी जा रही है। उधर पार्टी के जनप्रतिनिधि विभिन्न कार्यक्रम और पत्रकार वार्ताओं के जरिए केन्द्र सरकार की नौ वर्ष की उपलब्धियों को गिनाने में लगे हुए हैं। नवनियुक्ति पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल ने भी दो दिवसीय भ्रमण करके लोकसभा के चुनावों में जुटने का आवाह्न किया और चले गए। उन्होंने ने भी नगर निकाय में हुई हार की समीक्षा करना उचित नहीं समझा। यदि वे समीक्षा करते तो निश्चित रूप से पार्टी के तथाकथित गद्दारों के नाम उजागर हो सकते थे? ये आस्तीन के साँप क्या लोकसभा चुनाव में शांत बैठेंगे यह चिंता का विषय है?

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