विकास के नये द्वार खोलेगा मेजर एसडी सिंह विश्वविचालय |
फर्रुखाबाद,यूथ इंडिया। बाबू सिंह यादव ‘दद्दू’…. फर्रुखाबाद के युग पुरुष जिन्होंने अपना पूरा जीवन पिछड़े हुए जिले में शिक्षा के मन्दिरों को खोलने में हवन कर दिया। एक शिक्षक से प्रधानाचार्य फिर आधा सैकड़ा से अधिक विद्यालयों के संरक्षक व संस्थापक बनने के बाद अब ऐतिहासिक पाज्चाल प्रदेश में निजी विश्वविद्यालय के संरक्षक व संस्थापक बनने जा रहे हैं। यह सब सम्भव हो सका है उस पितृभक्त, आज्ञापालक ज्येष्ठ पुत्र डॉ. अनार सिंह यादव की वजह से। उन्होंने अपने जनक की किसी भी बात पर नकारात्मक उत्तर नहीं दिया। मंगलवार को भगवान महावीर का दिन था और इसी दिन प्रदेश में सत्तारूढ़ योगी केबिनेट ने प्रदेश के छह निजी विश्वविद्यालयों के संचालन की स्वीकृति प्रदान कर दी। इसमें ‘फर्रुखाबाद भोजपुर पर मेजर एसडी सिंह विश्वविद्यालय का नाम भी शामिल था। फर्रखाबाद के लिए यह बहुत बड़ा दिन था। बात 20वीं शताब्दी की करें तो फर्रुखाबाद में बिज्ञान के उच्च विद्यालय के नाम पर केवल आरपी डिग्री कॉलेज ही था। फर्रुखाबाद में एनएकेपी केवल बालिकाओं के लिए था।


शिक्षा के महर्षि बाबू सिंह यादव ‘दद्दू’ ने एक के बाद एक स्नातक विद्यालय, महाविद्यालयों की श्रृंखला लगा दी। वो दिशा निर्देशन देते रहे और छोटे कद के शरीर में विशाल व सम्वेदनशील ‘हदय, विराट व्यक्तित्व और विस्तृत सोच वाले डॉ.अनार सिंह उन निर्देशों का पालन करते रहे। बर्ष 2002, 29 जनवरी दिन मंगलवार को दद्दू ने मेरे समक्ष निजी विश्वविद्यालय का विचार रखा था। यह विचार शायद उस समय उनके मन में एक पौधे के समान ही था। ज्येष्ठ पुत्र डॉ. अनार सिंह उस समय पिता के पास ही बैठे थे। विश्वविद्यालय के पौधे रूपी विचार को वृक्ष बनाने का संकल्प तभी से डॉ. अनार सिंह ने ले लिया और मन ही मन वह कैसे होगा, उसका ताना-बाना बुनते रहे। दददू अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करते हैं, उनके नाम को अमर बनाने के लिए उन्होंने तमाम विद्यालयों के नाम अपने माता-पिता, बहन के नाम पर रखे। यही सोच डॉ. अनार सिंह की भी रही। वह भी अपने पिता दद्दू के नाम पर कई कॉलेज उनके रहते ही खोल चुके हैं और अब तो बाबा और पिता के रास्ते पर अंचल भी चल पड़े। संस्कार तो पूर्वजों से ही मिलते हैं।



