जीवा की हत्या के बाद नगर में पटाके दगा व मिष्ठान वितरित कर मनाई गई थी खुशियां

यूथ इण्डिया,फर्रुखाबाद। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता रहे पूर्व ऊर्जा एवं राजस्व मंत्री हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त जीवा की राजधानी में हुई हत्या के बाद नगर में जश्न मनाया गया। स्व0 द्विवेदी के चाहने वालों ने और परिवारियों ने पटाखें फोड़े, मिठाईयां बाँटी। स्व0 द्विवेदी के कसीदे भी खूब पढ़े गए। खुशी का इजहार हुआ लेकिन क्या स्व0 द्विवेदी के सपनों को साकार करने के बारे में भी किसी का ध्यान गया। यह सवालिया निशानों से घिरा है।

स्व0 द्विवेदी के राजनैतिक उत्तराधिकारी उनके पुत्र मेजर सुनील दत्त द्विवेदी लगातार दूसरी बार सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। स्वo द्विवेदी के भतीजे प्रांशु दत्त द्विवेदी विधान परिषद् के सदस्य हैं। इसके अलावा स्व० द्विवेदी के हजारों की तादाद में अनुयाई आदि भी उनके सपनों की मशाल हर वर्ष 9 फरवरी की शाम अपने हाथों में लेकर शहर में निकलते हैं, ‘चाचा ब्रह्मदत्त अमर रहे’ के नारे गुंजायमान होते हैं।

10 फरवरी को प्रतिवर्ष स्व० द्विवेदी को उसी स्थान पर याद किया जाता है जहाँ उनका पार्थिव शरीर 1997 में उनकी हत्या के बाद रखा गया था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या उनके सपनों का फर्रुखाबाद बनाने का प्रयास एक बार भी किया गया? कुछ नल, चंद सड़के, चंद हैंडपम्प और अभी हाल ही में लगे कुछ सोलर वॉटर कूलर अथवा छोटे-छोटे प्रयासों से स्व0 द्विवेदी के सपनों का फर्रुखाबाद बनाए जाने का प्रयास किया जा रहा है, क्या यह पर्याप्त है? सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि स्व0 द्विवेदी जो अपने प्रारंभिक राजनैतिक जीवन में नगर पालिका परिषद् के सभासद भी रहे, उनका प्रयास रहा कि भाजपा का चेयरमैन पालिका की कुर्सी पर हो लेकिन उनके रहते भी और उनके जाने के बाद भी उनका यह सपना अभी तक साकार नहीं हो पाया। इसमें कहीं न कहीं उनके अपनों का भी पेंच हर बार ही फँसता रहा है। परिस्थितियां जो भी रही हों लेकिन नगर पालिका में भगवा नहीं फहराया जा सका।

स्व. द्विवेदी के सपनों को साकार करने के लिए जनपद को उस राजनैतिक ऊँचाई तक ले जाने की आवश्यकता महसूस होती है जहाँ तक किसी शायर की यह पक्ति “खुदा बंदे से खुद पूँछे, तेरी रजा क्या है” सार्थक हो जाए लेकिन आपसी खींचतान परिवार में राजनैतिक विरासत की जंग और निजी महत्वाकांक्षाएं शायद यहाँ पर आड़े आती होंगी तभी न तो संगठन एकजुट हो पा रहा है और न ही परिवार की खेमेबंदी रुक पा रही है। परिणाम स्वरूप शोहरत, दौलत, ताकत सभी कुछ उपलब्ध होने के बावजूद भी सपने साकार नहीं हो पा रहे। परिवारिक एकजुटता का उदाहरण तो वहीं दिखाई दे गया जब स्व० ब्रह्मदत्त द्विवेदी के नाम पर स्थापित अस्पताल के स्वर्ण जयंती समारोह में भी परिवार एकजुट नहीं हो सका।

जीवा की हत्या की खबर मिलने पर शहर भर में खुशी का माहौल देखने को मिला, ऐसे में एक बार फिर लोगों के जहन में कौंधा कि शायद कर्णधार चेतेंगे और विधायक सदर की अगुवाई में स्व0 ब्रह्मदत्त द्विवेदी के सपनों का फर्रुखाबाद साकार होगा।

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