सुबह से ही चलती रहीं तैयारियां, कहीं घर तो कहीं बरगद के पेड़ के पास पहुँच किया गया पूजन, नव विवाहिताओं में खास उत्साह

यूथ इण्डिया संवाददाता, फर्रुखाबाद। वट सावित्री पूजा वर अमावस्या के मौके पर विवाहिताओं ने वटवृक्ष की पूजा करके पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना की। नव विवाहिताओं में वट सावित्री पूजा का विशेष उत्साह देखने को मिला। सुबह से ही घरों में पूजा की तैयारियां जोरों पर दिखाई दीं। विवाहिताओं ने वट सावित्री व्रत की कथा सुनाकर पतियों की लंबी आयु की कामना की।

पुराणों में वट सावित्री पूजा का अपना एक महत्व है। भारतीय संस्कृति त्यौहारों और उत्सवों की संस्कृति कही जाती है। पूरे वर्ष में शायद ही कोई ऐसा मौसम हो जब भारतीय समाज में त्यौहार नहीं होते। भारी गर्मी के दौर में जेठ की अमावस्या को होने वाली यह पूजा दामपत्य जीवन को सुखी बनाने में अपनी भूमिका निभाती है। बाजारों में मौसमी फलों, आम, खरबूजा आदि की जमकर बिक्री हुई।

वट वृक्ष की पूजा कर पति की दीर्घायु का वरदान माँगती विवाहिताएं

जब तक भगवान भास्कर अपने आयाम पर पहुँचे तब तक विवाहिताओं ने पूजा अर्चना करके पतियों से आशीर्वाद लिया और उनकी लंबी आयु की कामना की। नगर के वह स्थान जहाँ वटवृक्ष लगे हैं, सुबह से ही पूजा अर्चना करने के लिए विवाहिताओं का तांता लगा रहा। खासतौर से पटेल पार्क, कादरीगेट चौराहा, मदारवाड़ी स्थित प्राइमरी विद्यालय व अन्य बटवृक्षों की पूजा की गई और पीले रंग का धागा बाँधकर अखण्ड सुहाग की कामना की गई। इस त्यौहार पर वटवृक्ष की पूजा को इसलिए मान्यता दी गई कि विवाहिताएं पति एवं परिवार की वटवृक्ष की तरह ही बढ़ने, छाया देने, दीर्घ समय तक बने रहने की कामना करती है।

मिथक यह भी है कि पुराणों में वर्णित सावित्री और सत्यवान जंगल में लकड़ी काट रहे थे तभी सत्यवान बेहोश हो गए। सावित्री ने उन्हें वटवृक्ष के नीचे ही लिटा लिया और तपस्या करने लगी। यमराज जब सत्यवान के प्राण लेने आए तो सावित्री की तपस्या से प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा तो सावित्री ने पुत्रवती होने का वर माँगा और सत्यवान के प्राण लेकर चल दिए तो सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति के प्राण लिये जा रहे हैं तो आपका वरदान कैसे सार्थक होगा। यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। कहने का तात्पर्य है कि मातृ शक्ति यमराज से भी अपने पति के प्राणों की रक्षा कर सकती है।

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