सत्ता के आगे आचार संहिता बौनी, विरोधी जोर से बोल भी दे तो टूट जाती है आचार संहिता

फर्रुखाबाद, यूथ इंडिया संवाददाता। नगर निकाय के चुनावों में सदर नगर पालिका से प्रत्याशी टॉउन हाल की कुर्सी पर कब्जे के लिये पूरी ताकत झोंके हुए हैं। डोर टू डोर जन सम्पर्क और कहीं-कहीं पर नुक्कड़ सभाएं व चुनावी कार्यालय उद्घाटन के नाम पर लोगों को इठ्ठाकर वोट माँगे जा रहे हैं। कई जगहों पर चुनाव आयोग के निर्देशों की धज्जियां भी उड़ती देखी जा रही हैंखासतौर से सत्ताधारी वर्ग के उम्मीदवार इसमें आगे दिखायी दे रहे हैंवहीं बसपा प्रत्याशी द्वारा ढोल नगाड़े बजाकर वोट माँगने की शिकायतों के चलते चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ती दिख रही हैं। चुनाव अपने अंतिम शिखर पर पहुँच रहा है लेकिन अभी तक मतदाताओं की चुप्पी बंद मुठ्ठी की तरह प्रत्याशियों के भाग के फैसले को समेटे हुए हैं हालांकि चाय की दुकानों और मोहल्ले के गली चौराहों पर होती चर्चाओं के बीच दौड़ हाथी और साइकिल में बताई जा रही हैसत्ता का कमल कहाँ पर खिल जाए और कैसे खिल जाए इस बात का भरोसा भी नहीं है। योगी राज में प्रशासन का असर भी चुनाव परिणाम में दिखने की चर्चाएं हो रही हैं।

चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार की सीमाएं बाँधकर शांतिपूर्वक चुनाव कराने की भूमिका बनाई है। लेकिन उसमें सेंध लगाने का भी काम हो रहा है। प्रशासन की सतर्कता और सक्रियता विरोधियों पर ज्यादा दिख रही हैचुनावी दौर में प्रशासन को जो स्वतंत्रता मिलती है वैसा देखने को नहीं मिल रहा हैअगर कोई विरोधी दल का प्रत्याशी तेजी से सांस भी ले लो तो आचार संहिता के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज हो जात है लेकिन सत्ता की तरफ से भगवारथ पर भी चुनाव प्रचार करने पर सिवाय अखबारी चेतावानी के किसी प्रकार की कोई अन्य कार्यवाही न होना और अनुमति के बहाना करके ढिलाई बरतना दर्शा रहा है कि कहीं न कहीं पर चुनाव परिणामों पर प्रशासन का पेंच फँसने वाला हैऐसे में शांतिपूर्वक और पारदर्शी मतदान कैसे फिलहाल हो सकेगा यह जिम्मेदारों को देखने की जरूरत होगी। प्रत्याशिता को देखे तो डिप्टी सीएम के कार्यक्रम के बाद चुनाव दिशा लगभग तय हो गयी मानी जा रही है। और जैसी चर्चाएं हैं वैसे में कहीं त्रिकोणीय संघर्ष तो कहीं पर आमने सामने की टक्कर होने का जिक्र हो रहा है।

नगर पालिका सदर में निर्णायक वोटों में शुमार ब्राह्मण मतदाता और इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता का रुख तय करेगा कि चुनाव परिणाम किसके पक्ष में जाने वाला है। समझाता जाता है कि मुस्लिम वर्ग को नेतृत्व देने वाले एक पूर्व विधायक के परिवार से उम्मीदरवारी के चलते मुस्लिम मतदाताओं में बटवारे की चर्चाएं हैंवहीं सेवा और विकास के नाम पर वोट माँगकर प्रत्याशी पिछला इतिहास दोहरा भी सकते हैंऐसे में सत्ता में काबिज पार्टी ने नया प्रत्याशी दिया है। इस पार्टी के बेसिक वोट पर चर्चा करे तो उस पार्टी के प्रत्याशी को भी बाहर नहीं माना जा सकता हैअब जबकि मतदान के सिर्फ पाँच दिन शेष हैं, मतदाता अभी तक चुप बना हुआ है।

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